आपातकाल की वो काली रात, जब छीन लिए गए थे नागरिकों से मौलिक अधिकार

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आपातकाल की वो काली रात, जब छीन लिए गए थे नागरिकों से मौलिक अधिकार
आपातकाल की वो काली रात, जब छीन लिए गए थे नागरिकों से मौलिक अधिकार

दिल्ली: इंदिरा गांधी हमारे देश की आइरन लेडी और पहली महिला प्रधान मंत्री जिन्होंने बैंको को राष्ट्रीयकृत करना और बांग्लादेश वॉर जैसे अहम निर्णय लेकर देश में नए बदलाव लाये थे, लेकिन 25 जून 1975 का वो काला दिन ना सिर्फ हमारे संविधान और लोकतंत्र के लिए एक काला अध्याय है बल्कि इंदिरा गांधी के सभी कामों पर कालिख पोछने के लिए काफी था, जी हाँ हम बात कर है 25 जून 1975 को लगे आपातकाल की। इंदिरा गाँधी ने 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की थी जिसके बाद सभी नागरिको के मौलिक अधिकार उनसे छीन लिए गए थे, कई बड़े नेताओ को जेल भेज दिया गया था, अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गई थी लेकिन ये आपातकाल ज्यादा दिन नहीं चल सका।

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करीब 19 महीने बाद लोकतंत्र फिर जीता, लेकिन इस जीत ने कांग्रेस पार्टी की बुनियाद हिला दी थी। 1975 में इंदिरा गाँधी द्वारा लागू किये गए 19 माह के आपातकाल में आपातकालीन शक्तियों का बहुत अधिक दुरूपयोग किया गया. इस स्थिति को देखकर आपातकालीन शक्तियों के दुरूपयोग पर अंकुश लगाने की आवश्यकता महसूस की गयी जिसे 44वें संशोधन के नाम से संविधान में जोड़ा गया। इस संशोधन के बाद ये तो साफ़ था की सिर्फ आतंरिक अशांति के नाम पर आपातकाल घोषित नहीं किया जा सकता है, और अगर मंत्रिमंडल चाहता है की आपातकाल घोषित हो तोह लिखित रूप में राष्ट्रपति को परामर्श देना आवशयक है , साथ ही अब आपातकाल लागू करने के लिए संसद से विशेष बहुमत लेना भी जरूरी है।

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यही नहीं संसद साधारण बहुमत से आपातकाल की घोषणा समाप्त की जा सकती है। यही नहीं अब राष्ट्रपति द्वारा की गई संकटकालीन घोषणा को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। इस संशोधन के द्वारा ऐसी व्यवस्थाएँ की गई हैं कि भविष्य में शासक वर्ग के द्वारा निजि स्वार्थों की रक्षा के लिए आपातकाल लागू नहीं किया जा सके और आवश्यक होने पर जब आपातकाल लागू किया जाए तब भी शासक वर्ग द्वारा शक्तियों का मनमाना प्रयोग न किया जा सके।