पटना: चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोलकर नतीजों को अप्रत्याशित तौर पर प्रभावित कर दिया। हालत यह हो गई कि नीतीश कुमार का जनता दल यूनाइटेड (JDU) भारतीय जनता दल (BJP), राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के बाद तीसरे नंबर पर फिसल गया। अब नीतिश के सामने नैतिकता की बड़ी समस्या खड़ी हो गई। हालांकि, बीजेपी ने चुनाव के दौरान कई बार कहा कि नतीजे कुछ भी हों, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के नेता नीतीश कुमार ही होंगे। लेकिन बीजेपी के मुकाबले बड़े अंतर से सीटें कम आने के कारण बड़ी उहापोह की स्थिति पैदा हो गई।
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यह खबर प्रकाशित करते वक्त चुनाव आयोग के मुताबिक, बीजेपी 73 और आरजेडी 64 सीटों पर आगे थी जबकि जेडीयू को 49 सीटों पर बढ़त हासिल थी। तब एलजेपी की दावेदारी सिर्फ एक सीट पर दिख रही थी लेकिन उसके खाते में 5.8% वोट आ गए थे। वहीं, बीजेपी के खाते में 19.8% जबकि जेडीयू को 15.4% वोट मिल चुके थे। वहीं, आरजेडी को 22.9% वोट मिले थे। ऐसे में कहा जा सकता है कि अगर एलजेपी ने जेडीयू के खिलाफ कैंडिडेट्स नहीं खड़े किए होते तो नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने की संभावना होती।
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दरअसल, एक्सपर्ट्स जेडीयू की सीटें कम करने में बीजेपी की बड़ी भूमिका मान रहे हैं। उनके मुताबिक, बीजेपी भले ही जेडीयू के नेतृत्व में 2005 से ही सरकार बनाती रही हो, लेकिन नीतिश का कद छोटा करने की उसकी चाहत वक्त के साथ-साथ लगातार बढ़ती ही गई। कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि बीजेपी ने अपनी इसी इच्छा की पूर्ति के लिए इस बार चिराग पासवान को पिछले दरवाजे से आगे किया। चिराग की एलजेपी ने जेडीयू के वोट कटवा की भूमिका निभाई और अब बीजेपी का काम बनता दिख रहा है।
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