नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट फांसी की सजा के मामले में केन्द्र की पीड़ित और समाज के हितों का ध्यान रखते हुए गाइडलाइन तय करने की मांग पर विचार को राजी हो गया है। केन्द्र ने फांसी के दोषियों की कानून की आड़ लेकर देर करने के रवैये पर अंकुश के लिए ऐसे केस मे टाइमलाइन तय करने की मांग की है।
दरअसल, निर्भया केस में दोषियों की फांसी में देरी से देश में काफी नाराजगी है। लोगों की इस नाराजगी की वजह से ही बुधवार को केंद्र सरकार याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची। गृह मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में दायर याचिका में कहा कि मौत की सजा पर क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल करने के लिए समय सीमा तय की जाए। याचिका में कहा गया, ‘डेथ वॉरंट मिलने के बाद सात दिन में ही दया याचिका लगाने का नियम रहे। दया याचिका खारिज होने के बाद सात दिन में डेथ वारंट और अगले 7 दिन में फांसी हो। फिर चाहे अन्य दोषियों की कोई भी याचिका लंबित हो। हालांकि, मौजूदा गाइडलाइंस के मुताबिक, किसी भी दोषी की कोई भी याचिका लंबित होने पर उस केस से जुड़े बाकी दोषियों को भी फांसी नहीं दी जा सकती।
गौरतलब है कि निर्भया के साथ दरिंदगी के चारों दोषियों की फांसी की सजा कानूनी पैंतरों की वजह से लगातार टल रही है। पहले 22 जनवरी को फांसी चढ़ाने के लिए डेथ वारंट जारी किया गया था, लेकिन फांसी हो नहीं सकी। इसके बाद अब दोषियों को 1 जनवरी को फांसी चढ़ाने के लिए डेथ वारंट जारी किया गया है, लेकिन कल भी फांसी दिया जाना संभव नहीं है। बीते सोमवार को निर्भया के पिता बद्रीनाथ सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की तरफ से दाखिल की जा सकने वाली याचिकाओं की संख्या पर निर्देश जारी करने की अपील की थी। उन्होंने कहा था- सुप्रीम कोर्ट तय करे कि एक दोषी कितनी याचिकाएं दाखिल कर सकता है। ऐसा करने से ही महिलाओं को निश्चित समय में न्याय मिल सकता है।