उत्तराखंड हथकरघा और हस्तकला विभाग ने शहर के परेड ग्राउंड में 13 जनवरी तक राष्ट्रीय हस्तकला मेले का आयोजन किया है। उत्तराखंड में हस्तकला को बढ़ावा देने के लिए मेले में अलग-अलग तरह के स्टॉल लगाए गए हैं, जिनमें देश के अलग-अलग हिस्सों में हाथों से बनें कपड़ो को प्रदर्शित किया गया है। इनमे जयपुर, बनारस, कर्नाटक और उत्तराखंड समेत कई राज्यों और शहरों के हस्तकला के 150 से ज्यादा स्टॉल लगाए गए हैं, जिनमें से अकेले 45 स्टॉल उत्तराखंड के हैं और बाकी के बचे हुए स्टॉल भारत के अन्य राज्यों और शहर के।
स्टॉल में बनारसी साड़ी को दी प्रमुखता
बनारस की तरफ से लगे स्टॉल में बनारसी साड़ी को प्रमुखता दी गई है, जोकी विभिन्न स्टॉलो पर अच्छे और बेहतरीन दामों में मिल रही है। अगर इन साड़ियों के दाम की बात करें तो इसके अलग-अलग तीन स्टॉल पर इसका दाम 1000 से 30,000 के अंदर रखा गया है। इसके साथ ही सलवार-कमीज भी इन स्टॉलों पर 150 से 5000 के रेट पर मिल रही हैं। स्टॉलो पर मिलने वाले इन हस्तकला के कपड़ो की गुणवत्ता की बात करें तो इनमें सिल्क,सिल्क ऑफ मिक्स, कोटन, चंदेरी,प्यूओर कोटन समेत कई तरह के कपड़े शामिल है। इनमे शामिल ज्यादातर साड़ी और सलवार-कमिज वांछित गुणवत्ता के हैं। इन सभी को हस्तकला, हथकरघा और मशीनों के जरिए बनाया गया है।
12 साल से उत्तराखंड आ रहे हैं दुकानदार
दरअसल साड़ी बनाकर उन्हें बेचने वाले दुकानदार उत्तराखंड में अपने प्रोडक्ट्स को लेकर पिछले 12 साल से आ रहे हैं। इसके अलावा वे लोग विदेशो में भी अपने समान की बिक्री के लिए स्टॉल लगाते आए हैं। उत्तराखंड में अपनी स्टॉल लगाने को लेकर इन दुकानदारों का कहना है कि उत्तराखंड के लोगों की कपड़ो के मामले में नजर और पसंद बहुत अच्छी है और यहां के लोग काफी सहयोगी हैं। दुकानदारों ने कहा कि यहां हर बार हमारा स्वागत बड़े ही सम्मान के साथ होता है और यहां के लोग हमे बहुत प्यार देते हैं। आपको बता दें कि राष्ट्रीय हस्तकला मेला देश के सिर्फ चुनिदा राज्यों के शहरों में ही लगता है, जिनमें से उत्तराखंड अब एक बन गया है।
उत्तराखंड में लगा ये मेला हस्तकला के दुकानदारों और उन्हें बनाने वालों के लिए सुनहरा और अच्छा मौका है क्योंकि यहां उनकी कला के कदरदान हर जगह है और जैसा की खुद दुकानदारों का मानना है कि उत्तराखंड के लोगो की कपड़ो को लेकर पार की नजर होती है। इससे ये साफ है कि उत्तराखंड में इस मेले के लगने के बाद भारतीय हस्तकला को एक नई पहचान मिलेगी।