वन विभाग ने प्रदेश में आग की 90 फीसद घटनाओं को मानवजनित माना है। विभाग का यह भी दावा है कि प्रदेश में 90 फीसद दावानल पर काबू पा लिया गया है, जबकि आग लगाने के चार मामले दर्ज किए गए हैं। ये मामले पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, गढ़वाल व मसूरी में दर्ज हैं।
गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोसफ व न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की खंडपीठ में इन द मैटर ऑफ प्रोटेक्शन फोरेस्ट एरिया, फोरेस्ट वेल्थ एंड वाइल्ड लाइफ स्टेट ऑफ उत्तराखंड संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार से मामले को सुनने के बाद 25 जून तक जवाब दाखिल करने को कहा है, अगली सुनवाई भी 25 जून ही नियत की है।
उन्होंने कोर्ट को बताया कि 90 फीसद आग मानव जनित है। कुमाऊं की अपेक्षा गढ़वाल मंडल में अधिक आग लगी है। राज्य में 12 हजार वन पंचायतें हैं। कोर्ट ने पूछा है कि क्यों ना वॉलेंटियर नियुक्त किए जाएं। कोर्ट ने वन विभाग से अब तक कितने हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगी आग, वन भूमि को कितना हुआ नुकसान, कितने लोगों के खिलाफ दर्ज हुए केस और किन-किन स्थानों पर लगी आग और इसकी वजह से संबंध में जानकारी मांगी है।
अधिवक्ता पंत ने उठाए सवाल
हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एमसी पंत ने वन विभाग के कोर्ट को दिए जवाब पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि वन विभाग को एफआरआइ, वाडिया इंस्टीट्यूट, सर्वे ऑफ इंडिया की मदद लेनी चाहिए। उन्होंने 90 फीसद आग पर काबू करने के दावे को भी गलत बताया। यह भी कहा कि 90 फीसद आग मानवजनित कही जा रही है, जबकि गांवों से तो अधिकांश आबादी पलायन कर चुकी है।