बेहद नुकसानदेय होने के बावजूद भी भारत में पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नहीं बन पाता चुनावी मुद्दा

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बहेद नुकसानदेय होने के बावजूद भी भारत में पर्यावरण प्रदूषण नहीं बन पाया चुनावी मुद्दा

(मनीष चंद्र जोशी)

देहरादून: दुनिया तेजी से विकास कर रही है और इस विकास की दौड में मनुष्य रोज नए कीर्तिमान भी गढ रहा है। लेकिन विकास की इस दौड में ऐसी चीजे भी हो रही है जो हमारे पर्यावरएा के लिये बेहद नुकसानदेय है, लेकिन क्या कभी इस विकास की दौड में हम पर्यावरण के प्रति सचेत रहे? क्या कभी हमने खुद से पर्यावरण संरक्षण के लिये कोई पहल की है? लोकसभा चुनाव समाप्त हुए, रिजल्ट भी घोषित हो गये, भव्य शपथ ग्रहण समारोह भी हो गया। मुद्दे बहुत ऊठे धर्म जाति सम्प्रदाय से लेकर व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोपों तक। पर एक मुद्दा जो दम तोडतें नजर आया वो था पर्यावरण एवं उसके संरक्षण का। और यह सबसे बडा प्रश्न है कि आखिर क्यों भारत के चुनावों में पर्यावरण और प्रदूषण मुद्दा नही बनते ?

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कहने को हम विकास कर रहे हैं हमारी पहुॅच धरती से लेकर अन्तरिक्ष तक हो गयी है और सुख सुविधाओं से भरपूर हम विकास की दौड कर रहे लोगोे का विश्व पर्यावरण दिवस भी 5 जून को आयेगा, बडे बडे प्रोग्राम आयोजित किये जायेेेगे, पर्यावरण के संरक्षण को लेकर बड़ी बड़ी बाते भी की जायेंगी इतने से भी मन नही भरेगा तो सोशल मीडिया पर पर्यावरण मित्र का बडा सा टैग लगाकर फोटो पोस्ट की जायेंगी। बडे बडे माननीय भी अपने औदे के अनुसार भीड के साथ एक पौधा और उसके ठीक बगल में अपने नाम की एक प्लेट अवश्य लगायेंगे और ट्वििटर अकांउन्टो से फोटो अपलोड कर विश्व पर्यावरण दिवस पर जागरूक होने की बाते की जायेंगी। पेडो को लगाने और पर्यावरण संरक्षरण की शपथ ली जायेंगी। जागरूकता रैली निकाली जायेंगी और पर्यावरएा संरक्षण के नाम पर बहुत सारे नारे भी लगेंगे पर यह अलग बात है कि नही लोग नारो से जागरूक हो भी पायेंगे या नही।

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ग्रीन पीस नामक अन्तर्राष्ट्रीय एनजीओ ने रिपोर्ट जारी कर दावा किया है कि भारत में वायु प्रदूषण से हर साल करीब 12 लाख लोगो की मौत होती है। यह रिपोर्ट भारत के 168 शहरों से हासिल किये गये है जो कि वायु प्रदूषण पर आधारित है। भारत का कोई भी शहर वायु प्रदूषण के मामले पर वल्र्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन के पैमानो पर खरा नही उतरता है। अगर WHO के द्वारा तय किये गये मानकों को आधार माना जाय तो रिपोर्ट में शामिल भारत का हर शहर टेस्ट में फेल रहा है।

वर्ष 2013 में पूरी दुनिया में 30 करोड टन प्लास्टिक का इस्तेमाल किया गया और पूरी दुनिया में प्लास्टिक का इस्तेमाल दस प्रतिशत दर से बढ़ रहा है, जबकि 1950 में दस लाख पचास हजार टन प्लास्टिक इस्तेमाल हुआ हर मिनट प्लास्टिक से बनेे 10 लाख कैरी बैग तैयार होते है जो कि पॉलीथिन से बनाए जाते है। एक मनुष्य औसतन 1 वर्ष में 400 से 500 पॉलिथीन बैग्स का इस्तेमाल करता है। प्लास्टिक को डिकंमपोज होने में 500 से 1000 साल तक लग जाते हैं । डीकंपोज होने से पहले प्लास्टिक भूमिगत जल नदियों समुद्री जीव-जंतुओं और इंसानों को नुकसान पहुंचाता है। प्लास्टिक के डंपिंग ग्राउंड में बारिश के दौरान जो पानी रिसकर जमीन में चले जाता है उसके कारण भूमिगत जल भी प्रदुषित होता है। तकरीबन 80 लाख टन प्लास्टिक हर साल समुद्रों में पहुंच जाता है और समुद्री जीवन के लिए खतरा पैदा कर देता है. जिसके कारण कई समुद्री जीव जन्तुओं की मौत भी हो जाती है।

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गर्मी के समय में पारा 48 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच जाता है बेमौसम बारिश हो रही है शहरों में सांस लेना तक मुश्किल हो चुका है पता नहीं हम विकास की अंधाधुंध दौड़ में कहां चले जा रहे हैं अभी भी संभलने का वक्त है सँभल सकते हैं एक जनभागीदारी के तौर पर प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी को समझना चाहिए तभी इन समस्याओं से काफी हद तक निपटारा पाया जा सकता है सरकार ने इस साल की थीम सेल्फी विद सैंपल रखी हुई है परंतु सरकार के द्वारा ही जो पौधे लगाए जाते हैं उनकी रक्षा एवं संवर्धन के लिए जरूरी कदम उठाते हुए जवाबदेही भी उससे संबंधित विभाग और अफसरों की तय की जाए क्योंकि एक दिन फोटो खिंचवाने के बाद भूल जाने से न सिर्फ पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़ तैयार नहीं हो पाता बल्कि जनता के करोड़ो रुपए भी बर्बाद होते हैं