त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सर्वोच्च बलिदान अर्पित कर राष्ट्र का बढ़ाया गौरव

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देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड की एक पहचान वीरभूमि की भी है। शायद ही कोई परिवार हो, जिसका सदस्य सेना में न हो या न रहा हो। स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद तमाम मौके आए, जब अपने जांबाजों ने सर्वोच्च बलिदान अर्पित कर राष्ट्र का गौरव बढ़ाया। सियासी पार्टियां इस सच को बखूबी समझती हैं कि सैन्य परिवार उत्तराखंड में बड़े वोट बैंक की भूमिका में हैं। यह बात दीगर है कि इस मसले पर अब तक भाजपा पर ही अवाम ने भरोसा जताया है। अब मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राजधानी में सैन्यधाम की स्थापना के लिए कदम बढ़ाया है। दरअसल पिछले लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तराखंड के चार धाम के बाद इसे पांचवें धाम के रूप में सैन्य धाम का विशेषण दिया था। अब सरकार ने इस दिशा में पहल कर दी है। कहने वाले कुछ भी कहें, सच्चाई यही है कि त्रिवेंद्र फिर मास्टर स्ट्रोक खेल गए।

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मिनिस्टर इन वेटिंग, अब आगे की सेटिंग

इतना लंबा इंतजार, विधायक क्या, शायद किसी ने नहीं सोचा था। 70 विधायकों वाले छोटे से सूबे में मंत्रियों की संख्या वैसे ही सीमित, अधिकतम 12 ही मंत्री बन सकते हैं। जब त्रिवेंद्र ने सत्ता संभाली तो मंत्रिमंडल का आकार 10 सदस्यीय ही रखा। तब लगा कि जल्द ही दो मंत्री और बनाए जाएंगे। फिर डेढ़ साल पहले कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत के निधन से एक जगह और खाली हो गई। इसके बाद मुख्यमंत्री कई दफा बोले, जल्द विस्तार किया जाएगा। गुजरे मार्च में पूरी तैयारी भी थी, लेकिन कोरोना ने कदम थाम लिए। अब जबकि अगले विधानसभा चुनाव को महज सालभर का ही वक्त बाकी है, भाजपा विधायक मान बैठे हैं कि इस बार तो नंबर नहीं लगना। लिहाजा, अब अगली सरकार में सीट पक्की करने की कवायद शुरू हो गई है। अब इसे आप आशावादिता की पराकाष्ठा न कहें, क्योंकि उम्मीद पर ही तो सब कुछ कायम है।

सताने लगा डर, पत्ता तो नहीं कटेगा

विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, सालभर का वक्त होता ही कितना है। भाजपा, कांग्रेस समेत सभी पार्टियां जुट गई हैं अगले साल की शुरुआत में होने वाले दंगल की तैयारी में। कांग्रेस में तो शायद ही टिकटों की मारामारी हो, पार्टी वैसे ही नेताओं की किल्लत से जूझ रही है, लेकिन भाजपा का मसला अलग है। सत्तासीन है, लिहाजा टिकट के तलबगार भी ज्यादा होंगे। उस पर पार्टी पिछली दफा 70 में से 57 सीट जीती, यानी इस दफा महज 13 टिकट ही ऐसे हैं, जिन पर फैसला होना है। दरअसल, दिक्कत इन 13 को लेकर नहीं, बल्कि 57 सीटों की नुमाइंदगी कर रहे नेताओं में से कुछ को हो सकती है। भाजपा अकसर टिकट बटवारे में सौ फीसद सिटिंग-गेटिंग का फार्मूला अख्तियार नहीं करती, 15-20 फीसद सीटों पर नए चेहरों को चांस देती है। अब वे तमाम नेता परेशान हैं, जिन्हें इस दायरे में आने का डर सता रहा है।

वाह हरदा, चित भी अपनी, पट भी

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पिछले वर्ष बजट सत्र में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का एलान कर विपक्ष क्या, खुद सत्तापक्ष के अपने साथियों को भी चौंका दिया था। कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका रहा, क्योंकि उसके हाथ से एक चुनावी मुद्दा जो फिसल गया। अब फिर मुख्यमंत्री ने विधानसभा का बजट सत्र गैरसैंण में आयोजित करने की बात कही तो पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस महासचिव हरीश रावत की कसक झलक ही गई। चिर-परिचित अंदाज में तंज कसते हुए बोले, ”सरकार बड़ी जोर से नगाड़ा बजा रही है गैरसैंण में बजट सत्र के आयोजन पर, लेकिन बजट सत्र का अर्थ केवल कुछ दिन की लीपापोती नहीं होना चाहिए। लगे हाथ चुनौतीनुमा सुझाव भी दे डाला, यदि ट्रायल बेसिस पर डेढ़ महीने ही सही, सरकार का संचालन गैरसैंण से किया जाता है, तो यह सही दिशा में एक छोटा सा कदम होगा।” वाह हरदा, चित भी अपनी, पट भी।

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