कारगिल युद्ध के पहले शहीद थे ये अफसर, जिनके शव को पाकिस्तान ने क्षत-विक्षत भेजा था वापस

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कारगिल युद्ध के पहले शहीद थे ये अफसर, जिनके शव को पाकिस्तान ने क्षत-विक्षत भेजा था वापस

दिल्ली: कारगिल विजयी दिवस के मौके पर आज समूचा देश उन वीर जवानों को याद कर रहा है जिन्होंने भारत मां के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया है। इस मौके पर आज सभी लोग नम आंखों से भावपूर्ण श्रद्धाजंलि अर्पित कर रहे हैं। 26 जुलाई 1999 में जहां एक ओर पूरा देश विजय की वीरगाथा गा रहा था तो वहीं दूसरी ओर सभी की आंखो में नमी भी थी, क्योंकि भारत माता ने अपने कई वीर सपूतों का खोया था। कारिगल युद्ध में सबसे पहले नाम आता है कैप्टेन सौरभ ने जिन्होंने मात्र 22 साल की उम्र में ही देश के लिए अपने प्राणों का त्याग कर दिया था। कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान आर्मी ने उन्हें बंदी बना लिया था और उन्हें बुरी तरह से प्रताड़ित किया था, उसके बाद उनकी हत्या कर दी गयी थी। सौरभ भारतीय सेना के पहले अधिकारी थे जिन्होंने नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी घुसपैठ की जानकारी सबसे पहले दी थी।

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जानकारी के अनुसार, कैप्टन सौरभ मूल रूप से हिमाचल के पालमपुर के रहने वाले थे। अगस्त 1997 में सौरभ कालिया का चयन भारतीय सैन्य अकादमी में हुआ और 12 दिसंबर 1998 को वे भारतीय थलसेना में कमीशन अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए। जिसके बाद सेना में बतौर कैप्टन उनकी पहली तैनाती 4 जाट रेजिमेंट (इंफेंट्री) के साथ कारगिल सेक्टर में हुई। पाकिस्तानी घुसपैठियों की सूचना मिलने के बाद कारगिल के समीप काकसर की बजरंग पोस्ट पर तैनात 4 जाट रेजिमेंट के कैप्टन सौरभ कालिया को अपने पांच साथियों सिपाही अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखा राम, मूला राम व नरेश सिंह को क्षेत्र का मुआयना करने के लिए भेजा गया,

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लेकिन इसी बीच पाकिस्तानी घुसपेठियों ने उनको बंदी बना दिया और उनकों अपनी कैद में रखकर ऐसी घिनौनी हरकत की जिसे सुनकर शायद हर भारतीय के आंखों में आंसू आ जाएंगे। 22 दिनों तक पाकिस्तानी सेना ने उन्हें अपने कब्जे में रखा। बताया जाता है कि उन्हें रॉड से मारा जाता था, साथ ही उनकी आंखें फोड़ दी गयी थीं और प्राइवेट पार्ट को काट दिया गया था उसके बाद उनकी हत्या कर दी गयी थी। पाक अधिकृत कश्मीर के एक रेडियो ने सबसे पहले उनके बंदी बनाये जाने की सूचना दी थी।