Gujarat-Himachal Election: कांग्रेस के सियासी भविष्य के लिए बेहद अहम माने जा रहे गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों में पार्टी की नैया पार कराने की जिम्मेदारी दो सबसे बड़े चेहरों को सौंप दी है। वरिष्ठ चुनाव पर्यवेक्षक के रूप में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक बार फिर गुजरात में कांग्रेस का सत्ता का सूखा खत्म करने के लिए जोर लगाएंगे। जबकि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को वरिष्ठ चुनाव पर्यवेक्षक के तौर पर हिमाचल प्रदेश में पार्टी की किस्मत बदलने का जिम्मा सौंपा गया है। राजस्थान के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट, पूर्व सांसद मिलिंद देवड़ा, छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव और पंजाब से वरिष्ठ नेता प्रताप सिंह बाजवा को भी बतौर पर्यवेक्षक इन राज्यों के चुनावों में भूमिका दी गई है।
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इन चुनावों में क्या गहलोत दिखा पाएंगे जादू
2017 के गुजरात चुनाव में भी कांग्रेस महासचिव के तौर पर अशोक गहलोत ने अहम भूमिका निभाई थी। तब उन्होंने पार्टी अध्यक्ष बने राहुल गांधी की रीलॉन्चिंग की थी। भाजपा लगातार कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगा रही थी। इसका सियासी तोड़ निकालने के लिए गहलोत अपने साथ राहुल गांधी को गुजरात के सभी अहम मंदिरों में लेकर गए थे। इस चुनावी मुकाबले में कांग्रेस ने भाजपा को बेहद कड़ी टक्कर दी थी। पिछले पांच चुनावों में यह पहला मौका था, जब बड़ी मुश्किल से सत्ता में लौटी थी। भाजपा विधानसभा में सौ सीटों का आंकड़ा नहीं छू पाई थी। जबकि पार्टी ने 150 प्लस का नारा दिया था।
गहलोत ने पिछले चुनावों में भाजपा को न केवल बड़ी बढ़त से रोका, बल्कि कांग्रेस को 17 सीटों पर बढ़त भी दिलाई। जबकि 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 116 और कांग्रेस ने 60 सीटें जीती थीं। बहरहाल, हार्दिक पटेल जैसे कई युवा नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद संगठन की चुनौतियों से जूझ रही गुजरात कांग्रेस को 2022 में सत्ता की दावेदारी के लिए तैयार करना गहलोत के लिए आसान नहीं है। इस चुनावी संग्राम में टीएस सिंह देव और मिलिंद देवड़ा को गहलोत के साथ चुनावी रणनीति का संचालन करने की जिम्मेदारी दी गई है। मिलिंद देवड़ा भी लंबे अर्से से पार्टी में कोई खास भूमिका नहीं दिए जाने को लेकर नाखुश चल रहे हैं।
केरल, असम, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के नतीजों की समीक्षा में यह बात सामने आई थी कि भाजपा के चुनाव लड़ने के सिस्टम से कांग्रेस बहुत पिछड़ी हुई नजर आती है। इसी मसले पर उदयपुर चिंतन शिविर में भी चर्चा की गई थी। शिविर में यह संकल्प भी लिया गया था कि पार्टी जल्द ही एक इलेक्शन डिपार्टमेंट बनाएगी। जिसकी जिम्मेदारी किसी वरिष्ठ नेता को सौंपी जाएगी। इसी रणनीति के मद्देनजर पार्टी ने दो अहम चुनावी राज्यों की जिम्मेदारी दोनों मुख्यमंत्रियों को सौंपी है। इनके साथ पार्टी अन्य प्रमुख नेताओं को भी जोड़ा गया है।
गहलोत को दोबारा गुजरात की जिम्मेदारी सौंपने पर वरिष्ठ पत्रकार रावल कहते हैं कि गुजरात के पिछले विधानसभा चुनावों (Gujarat-Himachal Election) में अशोक गहलोत गुजरात कांग्रेस के प्रभारी महासचिव थे। इन चुनावों में कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन जीतने में कामयाब नहीं हो पाई थी। उस वक्त गहलोत ने राजस्थान के नेताओं को गुजरात चुनावों में विधानसभा क्षेत्रवार जिम्मेदारी दी थी। गहलोत गुजरात को बहुत ही अच्छे से समझते भी हैं और उनके प्रदेश का हिस्सा गुजरात से सटा भी हुआ है।
गुजरात के इस चुनाव (Gujarat-Himachal Election) में भी राजस्थान के नेताओं के हाथ बड़ी जिम्मेदारी है। यहां के प्रभारी रघु शर्मा भी राजस्थान के विधायक हैं। गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद रघु को पिछले साल ही गुजरात का प्रभारी बनाया गया है। इसके अलावा राजस्थान के 13 मंत्रियों सहित कई अन्य विधायकों को भी गुजरात की विधानसभा सीटों का नियुक्त किया गया है।
कांग्रेस को इस बार हिमाचल से उम्मीद
हिमाचल प्रदेश में हर पांच साल में सत्ता बदलने की प्रथा को देखते हुए कांग्रेस इस बार सरकार बनाने की संभावनाएं प्रबल मान रही है। मगर पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में जिस तरह से यह परंपरा टूटी है। इसे देखते हुए कांग्रेस हिमाचल में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। इसलिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जैसे नेता को वरिष्ठ पर्यवेक्षक के रूप में तैनात कर पार्टी आलाकमान ने यही संदेश देने की कोशिश की है। राजस्थान में कांग्रेस की सियासत में गहलोत के प्रतिद्वंदी माने जाने वाले सचिन पायलट को भी साधे रखने की रणनीति के तहत पार्टी हाईकमान ने उन्हें बघेल के साथ जिम्मेदारी दी है। जबकि पंजाब में नेता विपक्ष प्रताप सिंह बाजवा को भी दूसरा पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है।
असम के विधानसभा चुनावों (Gujarat-Himachal Election) में भी कांग्रेस ने सीएम बघेल को पार्टी का पर्यवेक्षक और कैंपेन मैनेजर बनाया था। कांग्रेस को बहुत उम्मीद थी कि राज्य में वह अच्छा प्रदर्शन करेगी। लेकिन वहां पार्टी का गठबंधन का फॉर्मूला सफल नहीं हो सका। यूपी के चुनाव में भी पार्टी ने बघेल को वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किया था। लेकिन वहां की परिस्थिति बिल्कुल अलग थी। यूपी में पूरी तरह से बाइपोलर इलेक्शन था। इसलिए सभी को पता था कि कांग्रेस का प्रदर्शन राज्य में अच्छा नहीं होगा।
असम और यूपी में बघेल के बतौर पर्यवेक्षक सफल नहीं होने की बात से वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई इत्तेफाक नहीं रखते हैं। वे कहते हैं, किसी भी प्रदेश में विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों, स्थानीय नेता और किसी भी पार्टी की शक्ति या कमजोरी के ऊपर लड़ा जाता है। चुनावों में पर्यवेक्षक तो एक सुपरवाइजर करने का काम करता है। वह सभी प्रकार के संसाधन जुटाने का प्रयास करता है। टिकट वितरण से लेकर चुनावी सभाओं में उसका अहम रोल होता है। यूपी में बघेल ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संसाधन उपलब्ध करवाने से लेकर मनोबल बढ़ाने तक काम किया। इसके अलावा प्रियंका गांधी की 206 चुनावी सभाओं का मैनेजमेंट किया। इसलिए चुनावों में जीत से पर्यवेक्षक की सफलता और असफलता आंकना थोड़ी ज्यादती होगी।
सभी को साध कर सियासी संतुलन बनाने की कोशिश
इधर, कांग्रेस पार्टी ने सचिन पायलट को हिमाचल प्रदेश कि चुनावों में ऑब्जर्वर बनाकर सियासी मैसेज दिया गया है। पायलट को चुनावों में पहले भी स्टार प्रचारक की जिम्मेदारी मिलती रही है। इस बार पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी देकर उनके समर्थकों को मैसेज दिया गया है। हाल ही सचिन पायलट ने कहा था कि कहा था कि गर्दन नीची करके पार्टी के लिए काम कर रहा हूं। अब सचिन पायलट को भूपेश बघेल के साथ हिमाचल की जिम्मेदारी दी है। गहलोत और पायलट को विधानसभा चुनावों (Gujarat-Himachal Election) में जिम्मेदारी देने को सियासी संतुलन बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव और राजस्थान में सचिन पायलट ऐसे नेता हैं, जो अपने-अपने राज्यों में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं। इसलिए पार्टी इन नेताओं को यह बताना चाहती है कि हमारे लिए मुख्यमंत्री ही नहीं आप लोग भी महत्वपूर्ण हैं। इसलिए हम आपकों को इतनी अहम जिम्मेदारियां सौंप रहे हैं।
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