इस बार 23 अगस्त शुक्रवार को अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र से युक्त अत्यंत पुण्यकारक जयंती योग में मनाया जाएगा। वही वैष्णव संप्रदाय व साधु संतो की कृष्णाष्टमी 24 अगस्त दिन शनिवार को उदया तिथि अष्टमी एवं औदयिक रोहिणी नक्षत्र से युक्त सर्वार्थ अमृत सिद्धियोग में मनाई जाएगी।
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जाने कृष्णा जन्माष्टमी की कथा…
बरसात की एक रात में कारागार में देवकी और वासुदेव के यहां श्री कृष्ण का जन्म हुआ। देवकी क्रूर राजा कंस की बहन थी। कंस अपनी बहन से बहुत प्रेम करता था। लेकिन जिस दिन वासुदेव से देवकी का विवाह हुआ उसी दिन एक आकाशवाणी हुई कि देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान कंस की मृत्यु का कारण बनेगी। यह सुनते ही कंस घबरा गया और कंस ने देवकी और वासुदेव को विदा करने के स्थान पर कारागार में बंद कर दिया। इसके बाद कंस ने एक-एक कर देवकी व वासुदेव के 7 बच्चों का वध कर दिया। इसके बाद वह घड़ी आई, जिसमें कृष्ण का जन्म होना था।
कंस की मृत्यु के बारे में चेतावनी देकर अंतर्ध्यान…
तो कृष्ण जन्म के बाद एक दिव्य आवाज ने वासुदेव को वृंदावन में अपने दोस्त नंद के घर कृष्ण को ले जाने के लिए कहा। अपने बच्चे के जीवन की खातिर, उन्होंने सभी तूफानों को पार किया और कृष्ण को वृंदावन ले गए और सुरक्षित रूप से कृष्ण को यशोदा और नंद के पास छोड़ दिया। वासुदेव एक बालिका के साथ राजा कंस के सामने इस उम्मीद गया यह सोचकर कि वह उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा।मगर निर्दयी कंस ने उसे भी मार दिया। इस छोटी लड़की को कोई नुकसान नहीं हुआ, वह रूप धारण कर हवा में उठीं और उसने कंस की मृत्यु के बारे में चेतावनी देकर अंतर्ध्यान हो गई। इसके बाद कृष्ण ने वृंदावन में बाल लीलाएं दिखाने के बाद कृष्ण में समय आने पर कंस का वध किया।
जानिए जन्माष्टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त…
जन्माष्टमी की तिथि: 23 अगस्त और 24 अगस्त
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 23 अगस्त 2019 को सुबह 08 बजकर 09 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त: 24 अगस्त 2019 को सुबह 08 बजकर 32 मिनट तक
रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 24 अगस्त 2019 की सुबह 03 बजकर 48 मिनट से
रोहिणी नक्षत्र समाप्त: 25 अगस्त 2019 को सुबह 04 बजकर 17 मिनट तक
जानिए जन्माष्टमी की पूजा विधि…
जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण की पूजा का विधान है। अगर आप अपने घर में कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मना रहे हैं तो इस तरह भगवान की पूजा करें:
- स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- अब घर के मंदिर में कृष्ण जी या लड्डू गोपाल की मूर्ति को सबसे पहले गंगा जल से स्नान कराएं।
- इसके बाद मूर्ति को दूध, दही, घी, शक्कर, शहद और केसर के घोल से स्नान कराएं।
- अब शुद्ध जल से स्नान कराएं।
- इसके बाद लड्डू गोपाल को सुंदर वस्त्र पहनाएं और उनका श्रृंगार करें।
- रात 12 बजे भोग लगाकर लड्डू गोपाल की पूजन करें और फिर आरती करें।
- अब घर के सभी सदस्यों में प्रसाद का वितरण करें।
- अगर आप व्रत कर रहे हैं तो दूसरे दिन नवमी को व्रत का पारण करें।