मनीष चन्द्र जोशी: आज हम पाश्चात्य संस्कृति की तरफ इतना आकर्षित हो गये है कि हम वैदिक संस्कृति एवं उसके विज्ञान को भूलते जा रहे है। जिसके कारण हमारी दिनचर्या तो प्रभावित हो ही रही हैसाथ ही हम अपने आने वाली पीढी को संस्कारी रूप से परिपोषित करने में भी असफल हो रहे है। अधिकांश लोग आज के समय में शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक रोगों से भी अत्यधिक प्रभावित है परन्तु जिस प्रकार अन्धकार को दूर करने के लिये केवल एक दीपक की आवश्यकता होती है उसी प्रकार एक मंत्र के नियमित जप के द्वारा हम अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित करते हुए इन सारी समस्याओं से निजात पा सकते है। आज हम आपको गायत्री मंत्र की उपयोगिता के बारे में बतायेंगे।
गायत्री की उत्पत्ति और महत्व –
सनातन संस्कृति जिसके गर्भ में वेदों से लेकर के आध्यात्मिक विज्ञान के ज्ञान का भंडार है और इन्ही वेदों को सनातन संस्कृति का आधार माना जाता है। वेद का अर्थ होता है ज्ञान। वेदो की कुल संख्या चार है माना जाता है कि सृष्टि के आदि में ब्रह्मा जी के द्वारा गायत्री मंत्र प्रकट हुआ और मां गायत्री की कृपा से ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रुप में की।
अथर्ववेद में मां गायत्री को आयु प्राण शक्ति कीर्ति धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली देवी कहा गया है।
महाभारत के रचयिता वेद व्यास गायत्री की महिमा में कहते हैं जैसे फूलों में शहद और दूध में घी सार रूप में होता है वैसे ही समस्त वेदों का सार गायत्री है। यदि गायत्री को सिद्ध कर लिया जाये तो यह कामधेनू के समान है। जैसे गंगा शरीर के पापों को धो कर तन मन को निर्मल करती है उसी तरह गायत्री रूपी ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र हो जाती है।
गीता में भगवान् कृष्ण ने स्वयं कहा है भी है ‘गायत्री छन्दसामहम् यानि गायत्री मंत्र मैं स्वयं ही हूं।
गायत्री को सर्वसाधारण तक पहुंचाने वाले विश्वामित्र कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने तीनों वेदों का सार तीन चरण वाला गायत्री मंत्र निकाला है। गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला मंत्र और कोई नहीं है। जो मनुष्य नियमित रूप से गायत्री का जप करता है वह पापों से वैसे ही मुक्त हो जाता है जैसे केंचुली से छूटने पर सांप होता है।
मंत्र विज्ञान के अनुसार किसी मंत्र की सिद्वि के लिये उस मंत्र के जप का एक निश्चित समय होता है और उसी समय विशेष में वह मंत्र फलदायी सिद्ध होता है। इसके साथ साथ मंत्र को प्रभावशाली बनाने के लिये उस मंत्र का शुद्धता के साथ उच्चारण भी आवश्यक है। तो आइये जानते है गायत्री का अर्थ और जप का सही समय
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
अर्थात कि उस प्राणस्वरूपदुःखनाशकसुखस्वरूपश्रेष्ठतेजस्वीपापनाशकदेवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें. वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे.
गायत्री मंत्र जप के लिए तीन समय बताए गए हैं। जप के समय को संध्याकाल भी कहा जाता है।
’ ब्रह्म मूहुर्त गायत्री मंत्र के जप का पहला समय है । सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के बाद तक करना चाहिए।
’ मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है।
’ इसके बाद तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त से कुछ देर पहले। सूर्यास्त से पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए।
यदि संध्याकाल के अतिरिक्त गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से करना चाहिए। मंत्र जप अधिक तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।
इस मंत्र के जप करने के लिए तुलसी की माला का प्रयोग करना श्रेष्ठ होता है। जप से पहले स्नान आदि कर्मों से खुद को पवित्र कर लेना चाहिए। मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए। घर के मंदिर में या किसी पवित्र स्थान पर गायत्री माता का ध्यान करते हुए मंत्र का जप करना चाहिए।
आइये अब जानतें है कि गायत्री मंत्र के नियमित जप के द्वारा होने वाले फायदो के बारे में
AIIMS के डॉक्टरों की 1998 से चल रही एक रिसर्च के अनुसार गायत्री मंत्र को ऋगवेद का सबसे प्रभावशाली मंत्र बताया गया है और रिसर्च में सामने आया कि इस मंत्र के नियमित जप के द्वारा बौद्धिक शक्ति का अनन्त विस्तार किया जा सकता है।
’ जीवन में घटने वाली घटनाओं का पूर्वाभास होने लगता है।
’ आशीर्वाद देने की शक्ति बढ़ती है।
’ उत्साह एवं सकारात्मकता बढ़ती है।
’ त्वचा में चमक आती है।
’ क्रोध शांत होता है।
’ बुराइयों से मन दूर होता है।
’ धर्म और सेवा कार्यों में मन लगता है।
’ स्वप्न सिद्धि प्राप्त होती है।
’ साधना का स्तर बढने से साधक को साक्षात मॉ गायत्री के दर्शन भी होते है
गायत्री मंत्र एक ऐसी अचूक दवा है जो हमे पूरी तरह से स्वस्थ्य रखता है यदि हम इस मंत्र के नियमित जप से अपने आस पास की नकारात्मता को दूर कर सकारात्मकता को वातावरण मे घोल ले।